प्राकृतिक चिकित्सा के मूल तत्त्व 

अगर मनुष्य कुछ आवश्यक  बातों को जान ले तो वह सदैव स्वस्थ रह सकता है !
आज कल बहुत  से रोगों का मुख्या कारण  स्नायु - दौर्बल्य तथा मानसिक तनाव  है जिसे दूर करने में प्रार्थना बड़ी सहायक सिद्ध होती है ! प्रार्थना से आत्मविश्वास बढ़ता है, निर्भयता आती है, मानसिक शांति मिलती है एवं नसों में ढीलापन उत्पन्न होता है अतः स्नायविक तथा मानसिक रोगों से बचाव व छुटकारा मिल जाता है ! रात्रि - विश्राम के समय प्रार्थना का नियम अनिंद्रा रोग एवं सपनों से बचाता है ! 
इसी प्रकार  शवासन भी मानसिक तनाव के कारण  होने वाले रोगों से बचने के लिए लाभदायी है !
प्राणायाम का नियम फेफड़ों को शक्तिशाली रखता है एवं मानसिक तथा शारीरिक रोगों से बचता है ! प्राणायाम दीर्घ जीवन जीने की कुंजी है ! प्राणायाम के साथ शुभ चिंतन किया जाये तो मानसिक एवं शारीरिक दोने रोगों से बचाव एवं छुटकारा मिलता है ! शरीर के जिस अंग  में दर्द एवं दुर्बलता तथा रोग हो उसकी ओर अपना ध्यान रखते हुए प्राणायाम करना चाहिए ! सुद्ध वायु नाक द्वारा अंदर भरते समय सोचना चाहिए  की प्रकृति से स्वास्थ्यवर्धक  वायु  रोगवाले स्थान पर पहुँच रही है जहाँ मुझे दर्द हो रहा है ! आधा मिनट श्वास  रोके रखे व पीड़ित स्थान का चिंतन कर उस अंग में हलकी - सी हलचल करें ! स्वास छोड़ते समय यह भावना करनी चाहिए कि पीड़ित अंग से गन्दी हवा के रूप में रोग  के कीटाणु बहार निकल रहे हैं एवं में रोगमुक्त हो रहा हूँ ! ॐ... ॐ... ॐ... 'इस प्रकार नियमित अभ्यास करने से स्वास्थ्यप्राप्ति में बड़ी सहायता मिलती है !

सावधानी : जितना समय धीरे -धीरे श्वास अंदर भरने में लगाया जाय, उससे दुगना समय वायु को धीरे-धीरे बहार निकालने में लगाना चाहिए ! भीतर श्वास रोकने को आभ्यांतर कुंभक व बहार रोकने को बाह्य कुंभक कहते हैं! रोगी एवं दुर्बल व्यक्ति अभ्यंतर  व बाह्य दोने कुंभक  करें ! श्वास आधा मिनट न रोक सके तो दो-पांच सेकेण्ड ही रोकें ! ऐसे बाह्य व आभ्यंतर कुम्भक को पांच-छ : बार करने से नाड़ी शुद्धि व रोगमुक्ति में अदभुत सहायता मिलती है !
स्वास्थ्य का मूल आधार संयम है ! रोगी अवस्था में केवल भोजन सुधार द्वारा भी खोया हुआ स्वास्थय प्राप्त होता है ! बिना संयम के कीमती दवाई भी लाभ नहीं करती ! संयम से रहने वाले वयक्ति को दवाई की आवश्यकता ही नहीं पड़ती !
बार-बार स्वाद  वशीभूत होकर बिना भूक के खाने को असयंम और नियम से आवश्यकता अनुसार स्वास्थ्यवर्धक आहार लेने को संयम कहते हैं! बार-बार कुछ -न- कुछ कहते रहने के कारण अपच, मंदाग्नि,कब्ज , पचीस, जुकाम, खांसी, सिरदर्द, उदरशूल आदि रोग होते हैं फिर भी यदि संयम का महत्व न समझें तो जीवनभर दुर्बलता, बीमारी, निरसा ही प्राप्त होगी !
सदैव स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है भोजन की आदतों में सुधार !
मैदे के स्थान पर चोकरयुक्त आटा , वनस्पति गहि के स्थान पर तिल्ली का तेल, हो सके तो सुद्ध  घी, सफ़ेद शक्कर के स्थान पर मिश्री या साधारण गुड़ एवं शहद , अचार के स्थान पर तजि चटनी , अण्डे -मांसादि के स्थान पर दूध -माखन, दाल सूखे मेवे आदि का प्रयोग शरीर को अनेक रोगो से बचता है!
इसी प्रकार चाय -कॉफी , शराब , बीड़ी-सिगरेट एवं तम्बाकू जैसे नशीली वस्तुओं के सेवन से बचकर भी आप अनेक रोगों से बच सकते हैं !







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