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ऋतुचर्या - ऋतु अनुसार आहार- विहार

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                                                    ऋतुचर्या  मुख्य रूप से तीन ऋतुएँ हैं : शीत ऋतु , ग्रीष्म ऋतु , वर्षा ऋतु ! आयुर्वेद के मत अनुसार छ : ऋतुएँ मानी गयी हैं : वसन्त , ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर ! महर्षि सुश्रुत ने वर्ष के १२ मास इन ऋतुओं में  विभक्त कर दिए हैं ! वर्ष के दो भाग होते हैं जिसमें पहले भाग आदान काल में सूर्य उत्तर की ओर गति करता है तथा दूसरे भाग विसर्ग काल में सूर्य दक्षिण की ओर  गति करता है ! आदान काल में शिशिर, वसंत एवं ग्रीष्म ऋतुएं और विसर्ग काल में वर्षा एवं हेमंत ऋतुएं होती हैं ! आदान के समय सूर्य बलवान और चंद्र क्षीणबल रहता है ! शिशिर ऋतु  उत्तम बलवाली, वसंत माध्यम बलवाली और ग्रीष्म ऋतु दौर्बल्यवाली होती है ! विसर्ग काल में चंद्र बलवान और सूर्य  क्षीणबल रहता है ! चंद्र पोषण करनेवाला होता है ! वर्षा ऋतू दौर्बल्य वाली , शरद ऋतू मध्यम बल व् हेमंत ऋतु उत्तम बलवाली...
प्राकृतिक चिकित्सा के मूल तत्त्व  अगर मनुष्य कुछ आवश्यक  बातों को जान ले तो वह सदैव स्वस्थ रह सकता है ! आज कल बहुत  से रोगों का मुख्या कारण  स्नायु - दौर्बल्य तथा मानसिक तनाव  है जिसे दूर करने में प्रार्थना बड़ी सहायक सिद्ध होती है ! प्रार्थना से आत्मविश्वास बढ़ता है, निर्भयता आती है, मानसिक शांति मिलती है एवं नसों में ढीलापन उत्पन्न होता है अतः स्नायविक तथा मानसिक रोगों से बचाव व छुटकारा मिल जाता है ! रात्रि - विश्राम के समय प्रार्थना का नियम अनिंद्रा रोग एवं सपनों से बचाता है !  इसी प्रकार   शवासन भी मानसिक तनाव के कारण  होने वाले रोगों से बचने के लिए लाभदायी है ! प्राणायाम का नियम फेफड़ों को शक्तिशाली रखता है एवं मानसिक तथा शारीरिक रोगों से बचता है ! प्राणायाम दीर्घ जीवन जीने की कुंजी है ! प्राणायाम के साथ शुभ चिंतन किया जाये तो मानसिक एवं शारीरिक दोने रोगों से बचाव एवं छुटकारा मिलता है ! शरीर के जिस अंग  में दर्द एवं दुर्बलता तथा रोग हो उसकी ओर अपना ध्यान रखते हुए प्राणायाम करना चाहिए ! सुद्ध वायु नाक द्वारा अंदर भरते सम...